मन की बेड़ियाँ
आओ हम आज मन की बेड़ियों को तोड़ कर जीवन में आगे बढ़ने का संकल्प करे । सदा ख़ुश रहें, औरें को भी ख़ुश रहने में मदद करें ।
क्या फा़यदा है मेरे इस जी के जंजाल में फंसे रहने का । जीवन का प्रीपेड कार्ड फिजू़ल बातों में कब ख़त्म हो जाएगा पता भी नही चलेगा ।
आओ इस मन के बंद कमरे को खोल कर सूरज की ताज़ी किरणों ओर इस जगत की किलकारियों से भर दें ।
अओ आज पहली बार बाहरी छोड़ अपने भीतर के लिये कुछ करें ।
क़़यों ना आज हम एक नया, तरो ताजा़़ संकल्प करें?