माना आँखे खुली हैं पर लगता है कि ज़िन्दा नहीं हूँ
खुद से कर रहा नाइंसाफ़ी मैं शर्मिन्दा हूँ
दिल चाहता है उड़ने को पर पंख कुतरे बैठा हूँ
कहीं उड़ना न पड़ जाये कुछ घबराया सा रहता हूँ ।

ठंडी हवाओं से है प्यार मुझे पर साथ बह जाने से डरता भी हूँ
ख़ुदा ख़ुदा करता तो हूँ लेकिन उसके साथ रहने से डरता भी हूँ
अजीब स्थित असमंजस की है जो चाहता हूँ उसे पाने का डर भी है
इसलिये ही तो शक है ख़ुद पर कि क्या मैं ज़िन्दा भी हूँ?

बाहर देखने को दिल नहीं चाहता
अन्दर झाँकने का वक़्त नहीं है
इस आनन फ़ानन में लगता कुछ भी सही नहीं है
ज़िन्दगी मैंने सोचा मिलि थी जीने के लिये
पर कहते हैं लोग कि मरने के बाद जी लेना, अभी तो जीना कुछ सही नहीं है ।