यह दिल में बसा अंधे कुँए सा ख़ालीपन, किसी चीज़ से भरने वाला नहीं।
बाहर जला दूँ मोमबत्तियाँ जितनी भी, अंदर का ये अँधेरा रोशिनी बनने वाला नहीं।
ख़ुश्बू के लिए तो गुलाब ही चाहिए होगा, कूड़ा करकट कभी महकने वाला नहीं।
आधी अधूरी बची इस ज़िंदगी को चाहता अब जी लूँ मैं, यह वक़्त दोबारा से आने वाला नहीं।

दिल में दर्द आँखों में नमी है, सोचता हूँ किस बात की कमी है।
लोग हँसते हैं दूसरों पर मैं ख़ुद की हँसी उड़ाता हूँ;
जानता हूँ कि उड़ सकता हूँ, पर ज़मीं पर ही छलाँग लगाता हूँ।
जो पी है आज मैंने अपने आँसुओं की शराब, ज़िंदगी आज लगती थमी है
बन सकता हूँ मैं ख़ुदा पर इंसान भी नहीं हो पाया, बस इतनी सी कमी है, बस यही कमी है।