हाथ में पकड़े हाथ ख़ुद का, लो चला मैं
ना डगर ना मंज़िल है, बस चला मैं
गीत प्यार भरे दिल में लिए चला मैं
ख़ुद से लड़ाते इश्क़ चला मैं

आशिक़ हूँ मैं ख़ुद का ख़ुदा मैंने ख़ुद में है पाया
स्वर्ग यहाँ नर्क यहाँ सब मुझ में ही है समाया
यह दुनिया मुझे जाने ना जाने पर मैंने इसको जाना
आया था मैं बिलकुल अकेला और अकेले ही है जाना

कंकर, पक्षी, जानवर, सब हैं उसके जिसने मुझे बनाया
सदियों तक उससे दूर रख मैंने ख़ुद को है बड़ा सताया
जो पकड़ा है हाथ उसका अब कभी ना छोड़ूँगा
फिर कभी भूल से भी ना उससे मूह मोड़ूँगा।